Hindi Poem – Mohtaj Nahi लोग होठों पे सजाये हुए फिरते हैं मुझे, मेरी शोहरत किसी अखबार की मोहताज नहीं, इसे तूफ़ान ही किनारे से लगा सकता है, मेरी कश्ती किसी पतवार की मोहताज नहीं, मैंने मुल्कों की तरह लोगों के दिल जीते हैं, ये हुकूमत किसी तलवार की मोहताज नहीं..
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